धूल
जब मैं छोटा सा बच्चा था ,
खेला करता था अति धूल |
कहती थी माँ - फूल रहा है ,
वाह , धूल में क्या ही फूल ||
मुझसे ही कितने ही बच्चे ,
थे सच्चे मेरे साथी |
कोई बन जाता था घोड़ा ,
कोई बनता था हाथी ||
लकड़ी के हल बैल बना कर ,
कोई बनता चतुर किसान |
कहीं बाग तालाब दीखते ,
बनते कहीं खेत खलिहान ||
मनमाना घर बना धूल में ,
खेला करते थे सब लोग |
हाय ! न अब आ सकता है ,
जीवन में वह सुखमय संयोग ||
खेल न है वह ,मेल न है वह ,
गये धूल में मिल सारे |
चिन्ताओं में चूर पड़े हैं ,
सब संगी साथी प्यारे ||
अरी धूल! तू तो है अब भी ,
हाँ ,न रहा बचपन मेरा |
पर इससे क्या -उर में है ,
वैसा ही पूर्ण प्यार तेरा ||
मात्रभूमि की सेवा का जो ,
लेते हैं अपने सिर पर भार |
वे अवश्य ही बाल्य काल में ,
कर चुकते हैं तुझको प्यार ||
जब मैं छोटा सा बच्चा था ,
खेला करता था अति धूल |
कहती थी माँ - फूल रहा है ,
वाह , धूल में क्या ही फूल ||
मुझसे ही कितने ही बच्चे ,
थे सच्चे मेरे साथी |
कोई बन जाता था घोड़ा ,
कोई बनता था हाथी ||
लकड़ी के हल बैल बना कर ,
कोई बनता चतुर किसान |
कहीं बाग तालाब दीखते ,
बनते कहीं खेत खलिहान ||
मनमाना घर बना धूल में ,
खेला करते थे सब लोग |
हाय ! न अब आ सकता है ,
जीवन में वह सुखमय संयोग ||
खेल न है वह ,मेल न है वह ,
गये धूल में मिल सारे |
चिन्ताओं में चूर पड़े हैं ,
सब संगी साथी प्यारे ||
अरी धूल! तू तो है अब भी ,
हाँ ,न रहा बचपन मेरा |
पर इससे क्या -उर में है ,
वैसा ही पूर्ण प्यार तेरा ||
मात्रभूमि की सेवा का जो ,
लेते हैं अपने सिर पर भार |
वे अवश्य ही बाल्य काल में ,
कर चुकते हैं तुझको प्यार ||
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