बछड़ा
बहुत बड़ा है मेरा बछड़ा |
पीता है जल रोज दो घड़ा ||
हरी हरी घासें खाता है |
साँझ सवेरे चिल्लाता है ||
गैया के संग चरने जाता |
दूध नहीं अब पीने पाता ||
पर न जरा है बुरा मानता|
मानों कुछ भी नहीं जानता ||
साथ हमारे खेला करता |
सिर से हम को ठेला करता ||
पर न लड़कियों को है भाता |
शायद उनकी गुड़िया खाता ||
मेरा घर उसका भी घर है |
पर न मिला उसको बिस्तर है||
है जमीन ही पर नित सोता|
नहीं चटाई को भी रोता ||
शायद इसे न पढ़ना आता |
इसीलिये कुछ मान न पाता ||
पर इसकी परवाह न इसको|
मान आन की चाह न इसको ||
और बड़ा जब हो जावेगा |
खेत जोतने यह जावेगा ||
काम करेगा फिर तन रहते |
वर्षा शीत घाम सब सहते ||
जो कुछ हैं हम पीते खाते |
इसकी ही मेहनत से पाते ||
है मेरा यह सच्चा साथी |
देकर इसे न लूँगा हाथी ||
बहुत बड़ा है मेरा बछड़ा |
पीता है जल रोज दो घड़ा ||
हरी हरी घासें खाता है |
साँझ सवेरे चिल्लाता है ||
गैया के संग चरने जाता |
दूध नहीं अब पीने पाता ||
पर न जरा है बुरा मानता|
मानों कुछ भी नहीं जानता ||
साथ हमारे खेला करता |
सिर से हम को ठेला करता ||
पर न लड़कियों को है भाता |
शायद उनकी गुड़िया खाता ||
मेरा घर उसका भी घर है |
पर न मिला उसको बिस्तर है||
है जमीन ही पर नित सोता|
नहीं चटाई को भी रोता ||
शायद इसे न पढ़ना आता |
इसीलिये कुछ मान न पाता ||
पर इसकी परवाह न इसको|
मान आन की चाह न इसको ||
और बड़ा जब हो जावेगा |
खेत जोतने यह जावेगा ||
काम करेगा फिर तन रहते |
वर्षा शीत घाम सब सहते ||
जो कुछ हैं हम पीते खाते |
इसकी ही मेहनत से पाते ||
है मेरा यह सच्चा साथी |
देकर इसे न लूँगा हाथी ||
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