ठाकुर श्रीनाथ सिंह आजादी से पहले के दौर के उन प्रकाशमान नक्षत्रों में से थे, जिन्होंने एक पूरे युग को दिशा दी और आज भी हम जो कुछ लिख रहे हैं, उसमें उनका झिलमिल आलोक कहीं न कहीं हमें आगे की राह सुझाता है। वे सही मायने में बच्चों के दोस्त साहित्यकार थे, जिन्होंने बच्चों को मोहने वाली दर्जनों कविताओं के अलावा बड़ी ही सुंदर कहानियाँ और नाटक लिखे। फिर वे एक महान संपादक और स्वाधीनता सेनानी तो थे ही।
खुशी की बात है कि बाल साहित्य के दिग्गज साहित्यकारों पर ‘बालवाटिका’ के विशेषांकों की सुंदर शृंखला में इस बार ठाकुर श्रीनाथ सिंह उपस्थित हैं। पूरी गरिमा और गौरव के साथ। उन पर एक से एक सुंदर लेखों के साथ ही श्रीनाथ जी की बेटी सुशीला चौहान जी का संस्मरण इस अंक की सबसे मूल्यवान निधि है। प्रिय भाई पुष्पेंद्र सिंह चौहान की निराली धुन भी है इसके पीछे। उनका लेख पढ़ने लायक है। फिर हर विधा में ठाकुर श्रीनाथ सिंह की चुनिंदा रचनाओं के साथ ही खुद उनका आत्मकथ्य इस अंक को यादगार बना देता है।
इसके साथ ही इस अंक में दीवाली पर केंद्रित सुंदर और रसपूर्ण सामग्री तो है ही। आवरण पर श्रीनाथ सिंह जी के साथ ही दीयों की झिलमिलाती लौ मानो बाल साहित्य के इस पुरोधा का अभिनंदन कर रही है। अलबत्ता यह विशेषांक ‘बालवाटिका’ के बाल साहित्यकारों पर केंद्रित विशेषांकों की शृंखला में एक नई, सुंदर और यादगार कड़ी है। इसके लिए मेरी बधाई और साधुवाद स्वीकारें!
ठाकुर श्रीनाथ सिंह आजादी से पहले के दौर के उन प्रकाशमान नक्षत्रों में से थे, जिन्होंने एक पूरे युग को दिशा दी और आज भी हम जो कुछ लिख रहे हैं, उसमें उनका झिलमिल आलोक कहीं न कहीं हमें आगे की राह सुझाता है। वे सही मायने में बच्चों के दोस्त साहित्यकार थे, जिन्होंने बच्चों को मोहने वाली दर्जनों कविताओं के अलावा बड़ी ही सुंदर कहानियाँ और नाटक लिखे। फिर वे एक महान संपादक और स्वाधीनता सेनानी तो थे ही।
ReplyDeleteखुशी की बात है कि बाल साहित्य के दिग्गज साहित्यकारों पर ‘बालवाटिका’ के विशेषांकों की सुंदर शृंखला में इस बार ठाकुर श्रीनाथ सिंह उपस्थित हैं। पूरी गरिमा और गौरव के साथ। उन पर एक से एक सुंदर लेखों के साथ ही श्रीनाथ जी की बेटी सुशीला चौहान जी का संस्मरण इस अंक की सबसे मूल्यवान निधि है। प्रिय भाई पुष्पेंद्र सिंह चौहान की निराली धुन भी है इसके पीछे। उनका लेख पढ़ने लायक है। फिर हर विधा में ठाकुर श्रीनाथ सिंह की चुनिंदा रचनाओं के साथ ही खुद उनका आत्मकथ्य इस अंक को यादगार बना देता है।
इसके साथ ही इस अंक में दीवाली पर केंद्रित सुंदर और रसपूर्ण सामग्री तो है ही। आवरण पर श्रीनाथ सिंह जी के साथ ही दीयों की झिलमिलाती लौ मानो बाल साहित्य के इस पुरोधा का अभिनंदन कर रही है। अलबत्ता यह विशेषांक ‘बालवाटिका’ के बाल साहित्यकारों पर केंद्रित विशेषांकों की शृंखला में एक नई, सुंदर और यादगार कड़ी है। इसके लिए मेरी बधाई और साधुवाद स्वीकारें!
सस्नेह, प्रकाश मनु