मेरी छाया
अम्मा ने जब दीप जलाया |
मैने देखी अपनी छाया ||
मुझ सी ही है सूरत सारी |
बहुत मुझे वह लगती प्यारी ||
जब जब मैं बिस्तर पर जाता |
उसे प्रथम ही लेटा पाता ||
उसको कुत्ते काट न सकते |
उसको दादा डाट न सकते ||
वह घटती बढ़ती मनमाना |
बना न कोई है पैमाना ||
साथ हमारा कभी न तजती |
जब मैं भगता वह भी भगती ||
एक रोज मैं उठा सवेरे |
रहा उसे आलस ही घेरे ||
खेतों में बिखरे थे मोती|
पर थी वह घर में ही सोती ||
पूरब में जब निकला सूरज |
वह भी आ पहुंची बिस्तर तज||
उसे साथ ले आया घर में |
उस सा मित्र न दुनियां भर में ||
अम्मा ने जब दीप जलाया |
मैने देखी अपनी छाया ||
मुझ सी ही है सूरत सारी |
बहुत मुझे वह लगती प्यारी ||
जब जब मैं बिस्तर पर जाता |
उसे प्रथम ही लेटा पाता ||
उसको कुत्ते काट न सकते |
उसको दादा डाट न सकते ||
वह घटती बढ़ती मनमाना |
बना न कोई है पैमाना ||
साथ हमारा कभी न तजती |
जब मैं भगता वह भी भगती ||
एक रोज मैं उठा सवेरे |
रहा उसे आलस ही घेरे ||
खेतों में बिखरे थे मोती|
पर थी वह घर में ही सोती ||
पूरब में जब निकला सूरज |
वह भी आ पहुंची बिस्तर तज||
उसे साथ ले आया घर में |
उस सा मित्र न दुनियां भर में ||
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