-चिनगारी-
घास फूस का ढेर पड़ा था ,
उस पर गिरी एक चिनगारी |
धुआँ हुआ फिर हुआ उजाला ,
चमक उठीं फिर गलियाँ सारी |
आग लगी है, आग लगी है,
शोर किया लड़कों ने भारी |
मेला सा लग गया वहाँ पर ,
जमा हुये इतने नर नारी |
हँस कर बोली वह चिनगारी ,
ओहो ! मैं हूँ कितनी न्यारी |
पहले कौन समझ सकता था ,
मुझमें है यह ताकत भारी |
घास फूस सी है यह दुनिया ,
नर की इक्छा है चिनगारी |
चाहे तो चमका सकता है ,
उसके बल पर वसुधा सारी |
घास फूस का ढेर पड़ा था ,
उस पर गिरी एक चिनगारी |
धुआँ हुआ फिर हुआ उजाला ,
चमक उठीं फिर गलियाँ सारी |
आग लगी है, आग लगी है,
शोर किया लड़कों ने भारी |
मेला सा लग गया वहाँ पर ,
जमा हुये इतने नर नारी |
हँस कर बोली वह चिनगारी ,
ओहो ! मैं हूँ कितनी न्यारी |
पहले कौन समझ सकता था ,
मुझमें है यह ताकत भारी |
घास फूस सी है यह दुनिया ,
नर की इक्छा है चिनगारी |
चाहे तो चमका सकता है ,
उसके बल पर वसुधा सारी |
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