-आँधी-
छप्पर उड़ कर गिरा भूमि पर ,
धूल गगन -तल पर जा छाई |
चौखट से लड़ गये किवाड़े ,
हर हर करके आँधी आई |
गोफन से बन बाग उठे हिल ,
छूटे चमगादड़ ज्यों ढेला |
पट पट आम गिरे गोली से ,
हुआ हवा का बेहद रेला |
कंघी करने लगीं झाड़ियाँ ,
निकले उनसे खरहे तीतर |
नदियों ने उड़ने की ठानी ,
नावें उलटीं उनके भीतर |
टूटे पेड़ रुकीं सब राहें ,
और कुओं का झलका पानी |
आँख बंद की सूरज ने भी ,
हार हवा से सब ने मानी |
छाई छटा अजीब धरा पर ,
घिरी घटा फिर काली काली |
वर्षा ने धो दिया जगत को ,
हुई नई उसकी हरियाली |
आँधी से भी जादा ताकत ,
बसती है मनुष्य के मन में |
वह चाहे तो कर सकता है ,
कुछ का कुछ दुनियाँ को छन में |
छप्पर उड़ कर गिरा भूमि पर ,
धूल गगन -तल पर जा छाई |
चौखट से लड़ गये किवाड़े ,
हर हर करके आँधी आई |
गोफन से बन बाग उठे हिल ,
छूटे चमगादड़ ज्यों ढेला |
पट पट आम गिरे गोली से ,
हुआ हवा का बेहद रेला |
कंघी करने लगीं झाड़ियाँ ,
निकले उनसे खरहे तीतर |
नदियों ने उड़ने की ठानी ,
नावें उलटीं उनके भीतर |
टूटे पेड़ रुकीं सब राहें ,
और कुओं का झलका पानी |
आँख बंद की सूरज ने भी ,
हार हवा से सब ने मानी |
छाई छटा अजीब धरा पर ,
घिरी घटा फिर काली काली |
वर्षा ने धो दिया जगत को ,
हुई नई उसकी हरियाली |
आँधी से भी जादा ताकत ,
बसती है मनुष्य के मन में |
वह चाहे तो कर सकता है ,
कुछ का कुछ दुनियाँ को छन में |
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