गर्मी
गर्मी आई, गर्मी आयी ,
खूब करो जी स्नान |
संध्या समय छनै ठंडाई,
हो शरबत का पान||
तरी भरी है तरबूजों में ,
खूब उड़ाओ , आम ||
अजी न लगते खरबूजों के,
लेने में कुछ दाम ||
खस की टट्टी लगी हुई है ,
पंखे का है जोर ||
आंधी आती धूल उड़ाती ,
करती हर हर शोर ||
बंद हुआ है स्कूल हमारा ,
अब किसकी परवाह?
चलों मौज से दावत खावें ,
है मुन्नू का ब्याह ||
जल में थोड़ा बरफ डाल दो ,
कैसा ठंडा वाह |
जाड़े में था बैर इसी से ,
अब है इसकी चाह ||
आओ छत पर पतंग उड़ावें ,
सूर्य गये हैं डूब |
दिन भर घर में बैठे बैठे ,
लगती थी अति ऊब ||
बजा रहे चिमटा बाबा जी ,
करते सीता राम ||
पहन लंगोटा पड़े हुए हैं ,
कम्बल का क्या काम ?
शाम हो गई आओ छत पर ,
सोवें पांव पसार |
विमल चांदनी छिटक रही है ,
ज्यों गंगा की धार ||
लुप लुप करते अगिणत तारे ,
ज्यों कंचन के फूल |
हैं मुझकों प्राणों से प्यारे,
सकता इन्हें न भूल ||
ऐसी सुखमयी गर्मी को भी ,
बुरा कहो क्यों यार ?
मालूम हुआ आज मुझको -
है झूठा सब संसार ||
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गर्मी आई, गर्मी आयी ,
खूब करो जी स्नान |
संध्या समय छनै ठंडाई,
हो शरबत का पान||
तरी भरी है तरबूजों में ,
खूब उड़ाओ , आम ||
अजी न लगते खरबूजों के,
लेने में कुछ दाम ||
खस की टट्टी लगी हुई है ,
पंखे का है जोर ||
आंधी आती धूल उड़ाती ,
करती हर हर शोर ||
बंद हुआ है स्कूल हमारा ,
अब किसकी परवाह?
चलों मौज से दावत खावें ,
है मुन्नू का ब्याह ||
जल में थोड़ा बरफ डाल दो ,
कैसा ठंडा वाह |
जाड़े में था बैर इसी से ,
अब है इसकी चाह ||
आओ छत पर पतंग उड़ावें ,
सूर्य गये हैं डूब |
दिन भर घर में बैठे बैठे ,
लगती थी अति ऊब ||
बजा रहे चिमटा बाबा जी ,
करते सीता राम ||
पहन लंगोटा पड़े हुए हैं ,
कम्बल का क्या काम ?
शाम हो गई आओ छत पर ,
सोवें पांव पसार |
विमल चांदनी छिटक रही है ,
ज्यों गंगा की धार ||
लुप लुप करते अगिणत तारे ,
ज्यों कंचन के फूल |
हैं मुझकों प्राणों से प्यारे,
सकता इन्हें न भूल ||
ऐसी सुखमयी गर्मी को भी ,
बुरा कहो क्यों यार ?
मालूम हुआ आज मुझको -
है झूठा सब संसार ||
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