-एक मित्र-
दादा ने है बन्दर पाला |
है वह बन्दर बड़ा निराला |
दरवाजे पर बैठा रहता |
कुछ भी नहीं किसी से कहता |
शायद सोचा करता मन में-
पड़ा हुआ हूँ मैं बंधन में |
इससे भूल गया सब छल बल |
खा लेता जीने को केवल |
मैं उस राह सदा जाता हूँ |
नित चुमकार उसे आता हूँ |
जिससे वह खुश हो सोचे रे |
अब भी एक मित्र है मेरे |
- कबूतर-
जरा बता दे मुझे कबूतर |
क्या है इस चिठ्ठी के भीतर ?
इसे कहाँ पहुँचायेगा तू |
और कहाँ सुस्तायेगा तू
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दादा ने है बन्दर पाला |
है वह बन्दर बड़ा निराला |
दरवाजे पर बैठा रहता |
कुछ भी नहीं किसी से कहता |
शायद सोचा करता मन में-
पड़ा हुआ हूँ मैं बंधन में |
इससे भूल गया सब छल बल |
खा लेता जीने को केवल |
मैं उस राह सदा जाता हूँ |
नित चुमकार उसे आता हूँ |
जिससे वह खुश हो सोचे रे |
अब भी एक मित्र है मेरे |
- कबूतर-
जरा बता दे मुझे कबूतर |
क्या है इस चिठ्ठी के भीतर ?
इसे कहाँ पहुँचायेगा तू |
और कहाँ सुस्तायेगा तू
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