-बाल -विनय-
विनय यही है हे परमेश्वर!
गीत तुम्हारे गाऊँ मैं |
बैठा अपने दिल में स्वामी
हरदम तुमको पाऊँ मैं |
पुत्र तुम्हारा कहलाऊँ मैं काम तुम्हारे आऊँ मैं |
जितने जीव रचे हैं तुमनें सबको सुख पहुँचाऊँ मैं |
मस्तक मेरा तुम्हे झुका हो उस पर हो सेवा का भार |
कैसा ही दुःख का सागर हो उसे करूँ मैं छिन में पार |
एक फूल सा हो यह जीवन लाल लाल हो जिसमें प्यार |
अच्छे कामों की सुगंध से भर दूँ मैं सारा संसार |
किसी वेष में आओ स्वामी तुम्हे सदा मैं लूँ पहिचान |
अन्धे की लकड़ी बन जाऊँ मूरख का बन जाऊँ ज्ञान |
ऐसा बल दो रोते के मुख में भर दूँ मीठी मुस्कान |
कभी नहीं उनसे मुख मोड़ूँ जो करने की लूँ मैं ठान |
है यह भारत देश हमारा इसको भूल न जाऊँ मैं |
इसके नदी पहाड़ वनों पर पक्षी सा मंडराऊं मैं |
इसका नाम न जाये चाहे अपना शीश कटाऊँ मैं |
भूल तुम्हे भी हे परमेश्वर !इसका ही कहलाऊँ मैं |
विनय यही है हे परमेश्वर!
गीत तुम्हारे गाऊँ मैं |
बैठा अपने दिल में स्वामी
हरदम तुमको पाऊँ मैं |
पुत्र तुम्हारा कहलाऊँ मैं काम तुम्हारे आऊँ मैं |
जितने जीव रचे हैं तुमनें सबको सुख पहुँचाऊँ मैं |
मस्तक मेरा तुम्हे झुका हो उस पर हो सेवा का भार |
कैसा ही दुःख का सागर हो उसे करूँ मैं छिन में पार |
एक फूल सा हो यह जीवन लाल लाल हो जिसमें प्यार |
अच्छे कामों की सुगंध से भर दूँ मैं सारा संसार |
किसी वेष में आओ स्वामी तुम्हे सदा मैं लूँ पहिचान |
अन्धे की लकड़ी बन जाऊँ मूरख का बन जाऊँ ज्ञान |
ऐसा बल दो रोते के मुख में भर दूँ मीठी मुस्कान |
कभी नहीं उनसे मुख मोड़ूँ जो करने की लूँ मैं ठान |
है यह भारत देश हमारा इसको भूल न जाऊँ मैं |
इसके नदी पहाड़ वनों पर पक्षी सा मंडराऊं मैं |
इसका नाम न जाये चाहे अपना शीश कटाऊँ मैं |
भूल तुम्हे भी हे परमेश्वर !इसका ही कहलाऊँ मैं |
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