वर्षा ऋतु
चारों ओर मची है हलचल |
गरज रहे हैं बादल के दल||
चमक चमक बिजली जाती है |
आँखों को चमका जाती है ||
झम झम बरस रहा है पानी |
घर से नहीं निकलती नानी ||
बेहद घिरी घटा है काली |
बिनती है बूंदों की जाली ||
बादल है अथवा बनमाली ?
देखो जहाँ वहीँ हरियाली ||
नाच रहे हैं मोर मुरेले |
कीच केचुएँ घर घर फैले ||
झरने हैं हो रहे पनाले |
गलियों में बहते हैं नाले ||
धूल जहाँ उड़ती थी बेढब |
वहीँ नहाता हाथी है अब ||
नदियाँ हैं समुद्र सी फैली|
लहर रहीं लहरें मटमैली ||
भीगी मिटटी महक रही है |
जल की चिड़िया चहक रही है ||
मेंढक भी मुंह खोल रहे हैं |
टर टों , टर टों बोल रहे हैं ||
भीग रहा बेचारा बंदर |
उसे बुला लो घर के अन्दर ||
है किसान भी चला रहा हल |
खुश हो उसका रहा मन उछल ||
वर्षा ही उसका जीवन है |
यह ही उस निर्धन का धन है ||
कल जब निकला घर से बाहर |
देखा इन्द्रधनुष था सुंदर ||
उसमें रंग कहाँ से आया ?
अब तक जान न मैंने पाया ||
दौड़ो नहीं , फिसल जाओगे |
मुंह में कीचड़ भर लाओगे ||
यहीं बैठ कर देखो बादल |
बनिये का सब नमक गया गल ||
किया पतन्गों ने है फेरा |
बादल सा दीपक को घेरा ||
बिगड़ रहे बैठक से दादा |
और न अब लिख सकता जादा||
चारों ओर मची है हलचल |
गरज रहे हैं बादल के दल||
चमक चमक बिजली जाती है |
आँखों को चमका जाती है ||
झम झम बरस रहा है पानी |
घर से नहीं निकलती नानी ||
बेहद घिरी घटा है काली |
बिनती है बूंदों की जाली ||
बादल है अथवा बनमाली ?
देखो जहाँ वहीँ हरियाली ||
नाच रहे हैं मोर मुरेले |
कीच केचुएँ घर घर फैले ||
झरने हैं हो रहे पनाले |
गलियों में बहते हैं नाले ||
धूल जहाँ उड़ती थी बेढब |
वहीँ नहाता हाथी है अब ||
नदियाँ हैं समुद्र सी फैली|
लहर रहीं लहरें मटमैली ||
भीगी मिटटी महक रही है |
जल की चिड़िया चहक रही है ||
मेंढक भी मुंह खोल रहे हैं |
टर टों , टर टों बोल रहे हैं ||
भीग रहा बेचारा बंदर |
उसे बुला लो घर के अन्दर ||
है किसान भी चला रहा हल |
खुश हो उसका रहा मन उछल ||
वर्षा ही उसका जीवन है |
यह ही उस निर्धन का धन है ||
कल जब निकला घर से बाहर |
देखा इन्द्रधनुष था सुंदर ||
उसमें रंग कहाँ से आया ?
अब तक जान न मैंने पाया ||
दौड़ो नहीं , फिसल जाओगे |
मुंह में कीचड़ भर लाओगे ||
यहीं बैठ कर देखो बादल |
बनिये का सब नमक गया गल ||
किया पतन्गों ने है फेरा |
बादल सा दीपक को घेरा ||
बिगड़ रहे बैठक से दादा |
और न अब लिख सकता जादा||
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