-नानी का कम्बल -
नानी का कम्बल है आला ,
देख उसे क्यों डरे न पाला |
ओढ़ बैठती है जब घर में ,
बन जाती है भालू काला |
रात अँधेरी जब होती है ,
ओढ़ उसे नानी सोती है |
तो मैं भी डरता हूँ कुछ कुछ ,
मुन्नी भी डर कर रोती है |
पर बिल्ली है जरा न डरती ,
लखते ही नानी को टरति |
चुपके से आ इधर -उधर से ,
उसमें म्याऊँ म्याऊँ करती |
कहीं मदारी यदि आ जाये ,
कम्बल को पहिचान न पाये |
तो यह डर है डम -डम करके ,
पकड़ न नानी को ले जाये |
नानी का कम्बल है आला ,
देख उसे क्यों डरे न पाला |
ओढ़ बैठती है जब घर में ,
बन जाती है भालू काला |
रात अँधेरी जब होती है ,
ओढ़ उसे नानी सोती है |
तो मैं भी डरता हूँ कुछ कुछ ,
मुन्नी भी डर कर रोती है |
पर बिल्ली है जरा न डरती ,
लखते ही नानी को टरति |
चुपके से आ इधर -उधर से ,
उसमें म्याऊँ म्याऊँ करती |
कहीं मदारी यदि आ जाये ,
कम्बल को पहिचान न पाये |
तो यह डर है डम -डम करके ,
पकड़ न नानी को ले जाये |
0 comments:
Post a Comment