-मक्खी की निगाह-
कितनी बड़ी दीखती होंगी ,
मक्खी को चीजें छोटी |
सागर सा प्याला भर जल ,
पर्वत सी एक कौर रोटी |
खिला फूल गुलगुल गद्दा सा ,
काँटा भारी भाला सा ||
ताला का सूराख उसे ,
होगा बैरगिया नाला सा |
हरे भरे मैदान की तरह ,
होगा इक पीपल का पात |
भेड़ों के समूह सा होगा ,
बचा खुचा थाली का भात |
ओस बून्द दर्पण सी होगी ,
सरसों होगी बेल समान |
साँस मनुज की आँधी सी ,
करती होगी उसको हैरान |
कितनी बड़ी दीखती होंगी ,
मक्खी को चीजें छोटी |
सागर सा प्याला भर जल ,
पर्वत सी एक कौर रोटी |
खिला फूल गुलगुल गद्दा सा ,
काँटा भारी भाला सा ||
ताला का सूराख उसे ,
होगा बैरगिया नाला सा |
हरे भरे मैदान की तरह ,
होगा इक पीपल का पात |
भेड़ों के समूह सा होगा ,
बचा खुचा थाली का भात |
ओस बून्द दर्पण सी होगी ,
सरसों होगी बेल समान |
साँस मनुज की आँधी सी ,
करती होगी उसको हैरान |
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