जब मैं कुछ बढ़ जाऊंगा
किसी पेड़ की डाली पकड़ कर
झट उस पर चढ़ जाऊंगा |
चिड़ियाँ चारों तरफ उड़ेंगी
देख उन्हें सुख पाऊंगा ||
चुन चुन कर सुन्दर कलियों को
माला कई बनाऊंगा ||
खुद पहनूँगा और साथियों
को सादर पहनाऊंगा ||
डंडे पर तब नहीं चढूँगा ,
घोड़ा एक मगाऊंगा ||
उस पर चढ़ कर इस दुनियां
का पूरा पता लगाऊंगा ||
एक बड़ी सीढी बनवा कर ,
बादल तक पहुचाऊंगा ||
बिजली यहाँ बांध लाऊंगा ,
अम्मा को दिखलाऊंगा ||
नहीं मास्टर का डर होगा ,
स्वयं गुरु बन जाऊंगा |
पर न किसी को कुरसी पर चढ़ ,
बेंत कभी दिखलाऊंगा ||
लड़कें मुझसे नहीं डरेंगे ,
और न उन्हें डराऊंगा |
जो तुतली बोली बोलेगा ,
राजा उसे बनाऊंगा ||
तब शायद मैं खेल खिलौने,
खेल नहीं सुख पाऊंगा ||
खेलूँगा तो फिर लड़के का ,
लड़का ही रह जाऊंगा ||
हाँ , चरखे का चलन चला है ,
चरखा रोज चलाऊंगा ||
मुन्नी की सब गुड़ियों को ,
खद्दर खासा पहनाऊंगा ||
है यह भारत वर्ष हमारा ,
इसको मैं अपनाऊंगा ||
इसके उड़ते तिनकों तक पर,
अपनी छाप लगाऊंगा ||
अपनी माँ का , मात्रभूमि का ,
सच्चा पुत्र कहाऊंगा ||
एक बार दुनिया दह्लेगी ,
जब मैं कुछ बढ़ जाऊंगा ||
किसी पेड़ की डाली पकड़ कर
झट उस पर चढ़ जाऊंगा |
चिड़ियाँ चारों तरफ उड़ेंगी
देख उन्हें सुख पाऊंगा ||
चुन चुन कर सुन्दर कलियों को
माला कई बनाऊंगा ||
खुद पहनूँगा और साथियों
को सादर पहनाऊंगा ||
डंडे पर तब नहीं चढूँगा ,
घोड़ा एक मगाऊंगा ||
उस पर चढ़ कर इस दुनियां
का पूरा पता लगाऊंगा ||
एक बड़ी सीढी बनवा कर ,
बादल तक पहुचाऊंगा ||
बिजली यहाँ बांध लाऊंगा ,
अम्मा को दिखलाऊंगा ||
नहीं मास्टर का डर होगा ,
स्वयं गुरु बन जाऊंगा |
पर न किसी को कुरसी पर चढ़ ,
बेंत कभी दिखलाऊंगा ||
लड़कें मुझसे नहीं डरेंगे ,
और न उन्हें डराऊंगा |
जो तुतली बोली बोलेगा ,
राजा उसे बनाऊंगा ||
तब शायद मैं खेल खिलौने,
खेल नहीं सुख पाऊंगा ||
खेलूँगा तो फिर लड़के का ,
लड़का ही रह जाऊंगा ||
हाँ , चरखे का चलन चला है ,
चरखा रोज चलाऊंगा ||
मुन्नी की सब गुड़ियों को ,
खद्दर खासा पहनाऊंगा ||
है यह भारत वर्ष हमारा ,
इसको मैं अपनाऊंगा ||
इसके उड़ते तिनकों तक पर,
अपनी छाप लगाऊंगा ||
अपनी माँ का , मात्रभूमि का ,
सच्चा पुत्र कहाऊंगा ||
एक बार दुनिया दह्लेगी ,
जब मैं कुछ बढ़ जाऊंगा ||
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