- गुड़ियों का घर -
गुड़ियों का घर बना हुआ है चमकदार चमकीला |
सुनो जरा तो बतलाती हूँ कैसा रँग रंगीला !
विविध रंगों से रंगा हुआ है हरा ,लाल औ' पीला|
कहीं गुलाबी कहीं बैंगनी और कहीं है नीला ||
हैं किवाड़ सोने के उसमें ,चौखट उसकी चांदी |
भीतर रहती गुड़िया रानी बाहर उसकी बाँदी ||
अति चमकीले रँग रंगीले आँखों को सुखकारी |
खिड़की औ' दरवाजों में हैं सुन्दर शीशे भारी ||
भांति भांति के चित्र टंगे हैं भीतर उसके भाई!
साथ हमारे मेला जाकर गुड़िया थी जो लाई ||
छोटी खाटें ,छोटे गद्दे ,छोटे बरतन भांडे |
सभी तरह की चीजें छोटी,छोटी हांडी हांडे ||
बाहर से है हुई सफेदी भीतर रँग रंगीला |
इसी भांति है सजा सजाया सारा घर भड़कीला ||
गुड़ियाँ सारी बड़ी दुलारी रहतीं हर्षित भाई!
लड़तीं और झगडतीं यदि वे आ पड़ती कठिनाई ||
यदि मैं भी गुड़िया होती ,इस घर में घुस जाती |
साथ उन्ही के रहती दिन भर कभी न बाहर आती ||
गुड़ियों का घर बना हुआ है चमकदार चमकीला |
सुनो जरा तो बतलाती हूँ कैसा रँग रंगीला !
विविध रंगों से रंगा हुआ है हरा ,लाल औ' पीला|
कहीं गुलाबी कहीं बैंगनी और कहीं है नीला ||
हैं किवाड़ सोने के उसमें ,चौखट उसकी चांदी |
भीतर रहती गुड़िया रानी बाहर उसकी बाँदी ||
अति चमकीले रँग रंगीले आँखों को सुखकारी |
खिड़की औ' दरवाजों में हैं सुन्दर शीशे भारी ||
भांति भांति के चित्र टंगे हैं भीतर उसके भाई!
साथ हमारे मेला जाकर गुड़िया थी जो लाई ||
छोटी खाटें ,छोटे गद्दे ,छोटे बरतन भांडे |
सभी तरह की चीजें छोटी,छोटी हांडी हांडे ||
बाहर से है हुई सफेदी भीतर रँग रंगीला |
इसी भांति है सजा सजाया सारा घर भड़कीला ||
गुड़ियाँ सारी बड़ी दुलारी रहतीं हर्षित भाई!
लड़तीं और झगडतीं यदि वे आ पड़ती कठिनाई ||
यदि मैं भी गुड़िया होती ,इस घर में घुस जाती |
साथ उन्ही के रहती दिन भर कभी न बाहर आती ||
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