Wednesday, 23 October 2013

क्या इसे पढ़ सकोगे ?


(जब मैं यह कविता लिख चुका तो एक लड़के ने हर दूसरी लाइन का आखिरी शब्द मिटा दिया पर तब भी मैंने इसे ठीक ठाक पढ़ लिया |बालकों !तुम भी तो पढ़ो और सोचो कि क्या छूट गया है , बड़ा मज़ा आएगा |-लेखक )
थी वह लड़की बड़ी दुलारी |
पहने थी रेशम की ----  
दर्पण देख सदा खुश होती |
क्योंकि जड़े थे नथ में ---
घर आते जब योगी ज्ञानी |
उन्हें पिलाया करती ----
आलस में न बिताती थी दिन |
सकती थी सौ तक गिनती -----
कभी न घर में करती दंगा |
जाती रोज नहाने ------
आती थी जब चूड़ी वाली |
खूब  बजाती थी वह ----
अभी उमर में थी वह छोटी |
किन्तु पका लेती थी ----
 'शिशु 'ले आती अगर सहेली |
खोल बूझती नई --------
जब वर्षा का मौसम आता |
दादा  से  मंगवाती  -----
बढ़ता जभी अँधेरा घर में |
सो जाती छिप  कर  -----
 (शिशु ,जुलाई १९२६ )

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