हुआ सवेरा कौआ बोला |
गंगा चला नहाने भोला ||
बाँय ! बाँय ! करती है गैया |
जल्दी दूध दुहाले मैया ||
मट्ठा खड़ी बिलोती नानी |
लिए हाथ में बड़ी मथानी ||
लेकर अलमारी की चाभी |
बना रही है हलुआ भाभी ||
राम राम रटता है तोता |
एक टांग पर जो था सोता ||
कोठे पर आ बैठा बन्दर |
देखो ,कहीं न आवे अन्दर ||
आया लखो जलेबी वाला |
कहता ," कितनी तौलूँ लाला ? "
धूप सुनहली छत पर छाई |
पढ़ने की बेला हो आयी |
(शिशु मार्च १९२७ )
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