ऊँट और सियार
एक ऊँट और एक सियार, साथ साथ चरते थे यार |
जंगल में करते थे खेल, था दोनों में भारी मेल |
एक रोज कह उठा सियार, आओ चलें नदी के पार |
हरा भरा है खड़ा अनाज, मन माना खाएंगे आज |
बस हो गया ऊँट तैयार, चढ़ा पीठ पर कूद सियार |
देखा पहुँच नदी के पार, मालिक सोता पाँव पसार |
खा कर के सियार भर पेट, कहने लगा घास पार लेट |
मेरी तो है ऐसी बान, खा चुकने पर गाता गान |
बोला ऊँट हाथ तब जोड़, भैया मुझे न भूखा छोड़ |
यदि किसान जायेगा जाग, तो मैं नही सकूँगा भाग |
पर सियार ने एक न मान,' हुआ!हुआ!' की छेड़ी तान |
डंडा लेकर उठा किसान, पीट ऊँट को किया पिसान |
बहुत हुआ तब ऊँट उदास, कहने लगा सियार आ पास |
आओ चले नदी के पार, कहीं न दे यह जी से मार |
बीच नदी में आकर ऊँट, बोला पी पानी दो घूंट |
मैं भी क्यों न ज़रा लूं लेट, थोड़ी-सी थकान लूं मेट |
विनती करने लगा सियार, अजी लेट लेना उस पार |
कहा ऊँट ने हो नाराज, मैं भी लूँगा बदला आज |
लोट लगाई उसने खूब, गया सियार पानी में डूब |
चलता जो मित्रों से चाल, उसका यह होता है हाल |
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