प्रार्थना
कहाँ तुम रहते हो, भगवान!
कभी न तुमको देखा मैंने,
सका न तुमको जान |
रहते हो तुम पास हमारे, फिर कैसे लूं मान |
तजो, अकेले रहने की क्यों डाली ऐसी बान |
नाथ ! उबते होगे कर लो हमसे ही पहिचान |
0 comments:
Post a Comment