पकड़ चाँद को यदि मैं पाता
पकड़ चाँद को यदि मैं पाता !
आसमान की ओर दिखाता |
लख तारों का मन ललचाता ||
पास हमारे आते ज्यों ज्यों उन्हें पकड़ता जाता |
फिर मैं एक अनोखी आला|
गुहता उन तारों की माला ||
सबके नीचे उसी चंद्रमा को गुह के लटकाता !
उसे छिपा कर रखता दिन में |
रगड़ रगड़ धोता छिन छिन में ||
मैल चंद्रमा का मिट जाता चकाचौंध हो जाता |
होती शाम रात जब आती |
अंधकार की बदली छाती ||
चुपके से वह हार पहिन मैं बेहद धूम मचाता |
अम्मा मुझे देख घबराती |
मुन्नी मेरे पास न आती ||
तरह तरह की बोल बोलियाँ सब को खूब छकाता |
अगर जान वे मुझको पाते |
मिलकर तुरत पकड़ने आते ||
हार उतार जेब में रखता अन्धकार हो जाता |
फिर जो मेरा कहना करता|
मुझसे हर दम रहता डरता ||
कभी कभी उसको भी खुश हो हार वही पहनाता |
पकड़ चाँद को यदि मैं पाता !
आसमान की ओर दिखाता |
लख तारों का मन ललचाता ||
पास हमारे आते ज्यों ज्यों उन्हें पकड़ता जाता |
फिर मैं एक अनोखी आला|
गुहता उन तारों की माला ||
सबके नीचे उसी चंद्रमा को गुह के लटकाता !
उसे छिपा कर रखता दिन में |
रगड़ रगड़ धोता छिन छिन में ||
मैल चंद्रमा का मिट जाता चकाचौंध हो जाता |
होती शाम रात जब आती |
अंधकार की बदली छाती ||
चुपके से वह हार पहिन मैं बेहद धूम मचाता |
अम्मा मुझे देख घबराती |
मुन्नी मेरे पास न आती ||
तरह तरह की बोल बोलियाँ सब को खूब छकाता |
अगर जान वे मुझको पाते |
मिलकर तुरत पकड़ने आते ||
हार उतार जेब में रखता अन्धकार हो जाता |
फिर जो मेरा कहना करता|
मुझसे हर दम रहता डरता ||
कभी कभी उसको भी खुश हो हार वही पहनाता |
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