उषा काल चिड़ियाँ बोलीं ,हिलीं लताएँ| लगी झूमने तरु शाखाएं||
पूर्व दिशा में रहे न तारे |
ऑंखें खोलो बोलो प्यारे||
लगी चटखने चटचट कलियाँ|
मह मह महक रहीं हैं गलियां|
दुहते हैं ग्वाले गड़ गायें |
बहती हैं स्वर्गीय हवाएं|
आँखों पर आयी अलसानी,
थकी हुई है निद्रा रानी |
रात तुम्हारी कर रखवाली,
जागो,अब है जाने वाली|
चंदा की मुस्कान निराली,
तारों भरी गगन की थाली|
बाग बगीचों में आ बिखरी|
फूलों की क्या रंगत निखरी|
मांग रही भर, उषा निराली|
पूरब में फैली है लाली|
अब न रहा है बहुत अँधेरा|
उठो आ गया पुनः सवेरा|
पूर्व दिशा में रहे न तारे |
ऑंखें खोलो बोलो प्यारे||
लगी चटखने चटचट कलियाँ|
मह मह महक रहीं हैं गलियां|
दुहते हैं ग्वाले गड़ गायें |
बहती हैं स्वर्गीय हवाएं|
आँखों पर आयी अलसानी,
थकी हुई है निद्रा रानी |
रात तुम्हारी कर रखवाली,
जागो,अब है जाने वाली|
चंदा की मुस्कान निराली,
तारों भरी गगन की थाली|
बाग बगीचों में आ बिखरी|
फूलों की क्या रंगत निखरी|
मांग रही भर, उषा निराली|
पूरब में फैली है लाली|
अब न रहा है बहुत अँधेरा|
उठो आ गया पुनः सवेरा|
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