मुन्नी और कुत्ता
मुन्नी थी छोटी सी लड़की
बड़ी दुलारी थी घर में |
तरह तरह के खेल खिलौने
ले सोती थी बिस्तर में||
एक रोज चाचा का कुत्ता
पकड़ कहीं पाया उसने |
मिला खिलौना मन का मेरे
यों कह चिल्लाया उसने ||
इसे घुमाउंगी सडकों पर
लड़के सब ललचायंगे |
रोयेंगे घर में जाकर पर
ऐसी चीज ना पायेंगे ||
इस प्रकार मन में खुश होती
निकली वह लड़की छोटी|
बड़ी शान से आज संवारी
थी उसने अपनी चोटी||
थी घमंड में भूली मुन्नी
जाती थी अकड़ी अकड़ी |
पर छिन में हा ढीली रस्सी
खिंची और हो गई कड़ी ||
अब वह पीछे थी औ कुत्ता
आगे दौड़ लगाता था |
रस्सी के तनने से उसका
कटा हाथ भी जाता था ||
और हाथ में गुड़िया की जो
मुन्नी लिए पिटारी थी |
लटक रही कुत्ते के मुंह से
वह सारी की सारी थी ||
अपने अपने दरवाजों पर
सब बच्चे हो गए खड़े |
तड़ तड़ खूब बजाई ताली
हंस हंस करके लोट पड़े ||
ऊँ ऊँ करती किसी तरह
आई मुन्नी वापस घर में |
"नहीं सुलाऊँगी कुत्ते को "
माँ से बोली -"बिस्तर में ||"
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