Tuesday, 20 October 2015

मुन्नी और कुत्ता


मुन्नी थी छोटी सी लड़की 

बड़ी दुलारी थी घर में |

तरह तरह के खेल खिलौने 

ले सोती थी बिस्तर में||

 

एक रोज चाचा का कुत्ता

पकड़ कहीं पाया उसने |

मिला खिलौना मन का मेरे

यों कह चिल्लाया उसने ||

 

इसे घुमाउंगी सडकों पर 

लड़के सब ललचायंगे |

रोयेंगे घर में जाकर पर 

ऐसी चीज ना पायेंगे ||

 

इस प्रकार मन में खुश होती 

निकली वह लड़की छोटी|

बड़ी शान से आज संवारी

थी उसने अपनी चोटी||

 

थी घमंड में भूली मुन्नी 

जाती थी अकड़ी अकड़ी |

पर छिन में हा ढीली रस्सी 

खिंची और हो गई कड़ी ||

 

अब वह पीछे थी औ कुत्ता 

आगे दौड़ लगाता था |

रस्सी के तनने से  उसका 

कटा हाथ भी जाता था ||

 

और हाथ  में गुड़िया की जो

मुन्नी लिए पिटारी थी |

लटक रही कुत्ते के मुंह से 

वह सारी की सारी थी ||

 

अपने अपने दरवाजों पर 

सब बच्चे हो गए खड़े |

तड़ तड़ खूब बजाई ताली 

हंस हंस करके लोट पड़े ||

 

ऊँ ऊँ करती किसी तरह 

आई मुन्नी वापस घर में |

"नहीं सुलाऊँगी कुत्ते को "

माँ से बोली -"बिस्तर में  ||"

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