-क्या बैठो हो ?
तेज हवा के झोंको पर चढ़ ,
आ पहुंचे हैं बादल के दल |
पंख खोल उड़ती हैं बूंदें ,
मची हूई है वन में हलचल |
सुख से पेड़ पहाड़ नहाते ,
मोर नाचते मेंढक गाते |
भूल दुखों को आशा से भर ,
खेत किसान जोतने जाते |
अन्धकार से कहता जुगनू ,
राह नहीं हूँ मैं निज भूला |
जर्रे जर्रे में जीवन है ,
कलियों ने है डाला झूला |
क्या बैठे हो घर में भाई ,
चलो प्रकृति की छटा निहारें ,
उगते खेत , उमड़ती नदियाँ ,
घिरते घन की घटा निहारें |
तेज हवा के झोंको पर चढ़ ,
आ पहुंचे हैं बादल के दल |
पंख खोल उड़ती हैं बूंदें ,
मची हूई है वन में हलचल |
सुख से पेड़ पहाड़ नहाते ,
मोर नाचते मेंढक गाते |
भूल दुखों को आशा से भर ,
खेत किसान जोतने जाते |
अन्धकार से कहता जुगनू ,
राह नहीं हूँ मैं निज भूला |
जर्रे जर्रे में जीवन है ,
कलियों ने है डाला झूला |
क्या बैठे हो घर में भाई ,
चलो प्रकृति की छटा निहारें ,
उगते खेत , उमड़ती नदियाँ ,
घिरते घन की घटा निहारें |
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